Sunderkand katha में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम के परम प्रिय भक्त हनुमानजी की लीलाओं का वर्णन किया है। इस अध्याय में प्रस्तुत की गई अद्भुत और मनोहारी लीलाओं के कारण ही तुलसीदास ने इसे ‘Sunderkand’ का नाम दिया।
Sunderkand” रामायण का पांचवां काण्ड है और यह भगवान श्रीराम के परम भक्त और भगवान शंकर के पुत्र हनुमान की महाकाव्यिक कथा है। यह काण्ड वाल्मीकि रामायण में प्रमुख रूप से आता है और इसका विशेष महत्व है। यहाँ पर Sunderkand की संक्षिप्त कथा दी गई है:
Sunderkand कथा भगवान राम के वनवास के दौरान की घटनाओं का वर्णन करती है, जब भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का हरण कर लिया था। सीता का अपहरण राक्षस रावण ने किया था और उसने सीता को लंका ले जाकर अपने अशोक वन में बंद कर दिया। Sunderkand Katha
भगवान राम और लक्ष्मण ने हनुमान को भगवान शंकर की कृपा से भेजा ताकि वह सीता माता का पता लगा सके। हनुमान जी ने लंका पहुंचकर वहां अनेक आश्चर्यजनक घटनाएं देखीं और उन्हें श्रीराम का सन्देश पहुंचाया।
हनुमान जी ने अशोक वन में सीता माता से मिलकर उन्हें श्रीराम की खबर सुनाई और उन्हें श्रीराम के द्वारा उनके प्रति अपनी प्रेम और श्रद्धा का संकेत दिया। उसके बाद, हनुमान जी ने लंका को आग लगाई और लंका के नागरिकों के माध्यम से उनके युद्धक्षेत्र में श्रीराम की सेना को बुलाया। यहाँ तक कि हनुमान जी ने रावण के दरबार में भी गए और उन्हें श्रीराम का सन्देश दिलाया। Sunderkand Katha
इसके बाद, भगवान राम की सेना लंका पहुंचकर एक महायुद्ध करती है और उसमें रावण वध होता है। सीता माता को छुड़ाने के बाद, भगवान राम, सीता और लक्ष्मण वनवास समाप्त होकर अयोध्या वापस जाते हैं और उनके राज्याभिषेक का वर्णन किया जाता है।
इस प्रकार, Sunderkand में हनुमान जी की महाकाव्यिक कथा और उनकी श्रद्धा, वीरता, और भगवान श्रीराम के प्रति प्रेम की महत्वपूर्ण घटनाएं दर्शाई गई हैं। यह काण्ड भक्तों के बीच में बड़े आदर और भक्ति के साथ पढ़ा जाता है। Sunderkand Katha
Sunderkand Katha | श्री रामचरितमानस महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण अध्याय
जामवाद के सुन्दर वचन हनुमान जी के ह्रदय के मन को बहुत ही प्रिय लगे और हनुमान जी बोले कि आप लोग दुख सह कर कंद मोल फल खा कर तब तक मेरी प्रतीक्षा करे। जबतक में सीता जी को अवश्य ही खोज लूंगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। इतना बोल कर सब के सामने शीश झुका कर सब को प्रणाम कर कर, हनुमान जी प्रसन्नता पूर्वक वहा से निकाल पड़े। समुद्र के तट पर एक अति सुन्दर पर्वत था। हनुमान जी कुद कर उस पर्वत पर चढ गए। और श्री राम जी को याद करते हुए वहा से कूद गए। हनुमान जी के जाने पर वहा पर्वत पाताल में धास गया । Sunderkand Katha
समुद्र ने उस मैनाक पर्वत को कहा तू हनुमान जी की थकावट दूर करने वाला बन और उन्हें अपने ऊपर विश्राम करने दे। मैनाक पर्वत ने समुद्र की बात में कर हनुमानजी को विश्राम करने को कहा किंतू हनुमान ही को राम जी का काम करना था तो वे वहा नहीं रुके। वहीं स्वर्गलोक से सारे देवताओं ने हनुमान जी को देखा और उनकी परीक्षा लेने का सोचा। अतः देवतो ने सुरसा नामक सरपो की माता को भेजा। सुरसा हनुमान जी के सामने प्रकट हो कर नुहे खाने के लिए लपकी तब हनुमान जी ने सुरसा से कहा कि है माता मै एक बार राम जी का कार्य के सीता माता की खबर दे दू। मै सायम आ कर आपके मुंह में प्रवेश कर लूंगा तब तुम मुझे खा लेना। परन्तु सुरसा ने एक ना सुनी। Sunderkand Katha
सरस सा ने हनुमान जी की खाने के लिए आगे बढ़ी तो फिर हनुमान ही ने भी अपना आकार बड़ा दिया । सुरसा और हनुमान जी अपना आकार बड़ा करते गए और फिर सुरसा ने अपना आकार सर्योजन जीतन किया तो हनुमान जी ने आपन आकार छोटा कर उनके मुख में प्रवश कर तुरत वापस आ गए। और कहा कि माता मेने आप की इच्छा पूरी की। फिर माता सुरसा ने कहा मेने तुम्हारे बल और बुद्धि का भेद पा लिए है। जिसके लिए देवताओं ने मुझे भेजा गया था फिर सुरसा ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया की तुम राम जी का कार्य अवश्य करेंगे क्योंकि तुम बल और भुद्धी के गुनी हो।
इतना कहा कर सुरसा माता वहा से चल पड़े और हनुमान जी भी आगे की और चल पड़े समुद्र में एक शक्षशी रहती थी वह आसमान में उड़ते पक्षिओ को खा लेती थी। Sunderkand Katha
ऐसा ही कुछ हनुमान जी के साथ करने का उसने सोचा। परन्तु हनुमान जी ने उसके छल को पहचान लिया। और उसको मार कर आगे बड़ गए। उसके बाद हनुमान जी ने समुद्र को पर कर लिया। हनुमान जी ने फिर एक सुंदर वान देख वहीं एक विशाल पर्वत देखा और उस पर चढ गए। उस पर्वत पर चढ कर हनुमान जी ने लंका देखी और वहा के रक्ष्शो के दल देख। हनुमानजी ने देखा कि उस सुंदर स्वर्णनगरी पर बहुत से रक्ष्श पहरा दे रहे है। अब उसने शामक्ष एक विपदा आ गई परन्तु । उसी वक्त उन्हें एक युक्ति सिजी उन्होंने सोचा अगर वे अत्यंत छोटे हो जाए तो उन्हें कोई देख भी नहीं पाएगा। फिर वे इतने छोटे हो गए बिल्कुल मच्छर के समान उन्हें कोई देख भी नहीं सकता था। Sunderkand Katha
श्री राम का नाम ले का उन्होंने लंका प्रवेश कर लिया उसी समय एक लंकिनी नाम की सक्षशी ने हनुमान जी को देख लिया और उनसे बोला कि मेरा अनादर कर के मुझसे बिना पूछे तू कहा जा रहा है। यह जितने भी लोग आते है। वे मेरा भोजन बन जाते है। उसके ऐसा कहते हुए हनुमान जिन उसे एक घसा दे दिया और वो रक्षशी प्रथ्वी पर गिर गई। तब लंकिनी खून से लथपथ हो कर उठी और दर के मेरे हाथ जो कर कहा हे वानर जब ब्रह्म जी ने रावण को वरदान दिया था। Sunderkand Katha
जब जाते हुए ब्रह्म जी ने मुझे राक्षशो की यह पहाचन बताई। जब तू एक वानर के मारने से व्याकुल हो जाए। तब तू जानलेना कि सक्षशो का सहार अब निकट है। मेरे बड़े पुण्य हो गए की मुझे आप के दर्शन हुए श्री राम के दूत के दर्शन हुए। फिर हनुमान जी अपने छोटे आकार में आकर आगे की ओर चल पड़े। लंका में प्रवेश करे के हनुमान जी महेल के सारे कक्ष को छाना। वहा की शोभा अवर्निया थी। हनुमान जी ने रावण को सोते हुए देखा था। परन्तु उन्हें माता सीता नहीं मिली। वहा एक सुंदर सा माहेल दिखा जहा श्री राम का मंदिर दिखाई दिया। Sunderkand Katha
वह महेल श्री राम जी के धनुष चिन्हों से शुशो भित था। वह पर तुलसी के पेड़ को देख कर हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि इस रक्षशों के महेल में ये साजन व्यक्ति का निवास स्थान कैसे है। उसी वक्त विभीषण जी जग गए। वह महल विभीषण जी का था। विभीषण जी जागते ही राम नाम का स्मरण करना शुरू कर दिया। हनुमान जी भी प्रसन्न हो कर उनके पास अपना परिचय दे पहुंच गए। उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप ले कर विभीषण जी से मिलने आ गए।
हनुमान जी को विभीषण जी ने पहचान लिया। हनुमान जी ने अपनी व्यथा बताई कि वे कैसे सीता जी की खोज में आय है। विभीषण में फिर हनुमान को सीता जी के बारे में बता कि ये यह कैसे रहा रही है। हनुमान कहते की मुझे सीता माता से मिलना है। इस पर विभीषण ने सीता का पता दे दिया। उन्होंने बता या की सीता माता अशिकवाटिका में रह रही है। हनुमान जी विभीषण से विदा ले कर अशिकवाटिका और नीकल पड़े। Sunderkand Katha
अशोकवाटिका में उन्होंने सीता माता को देखा और मन ही मन सीता माता को प्रणाम किया। हनुमानजी सीता माता की दशा देख कर बहुत दुखी हुए। उन्होंने देख की कैसे सीता माता दिन रात श्री राम जी का स्मरण करती रहती है। और रात्रि के चारो पहेर बैठे बैठे ही बीता देती है। इतने में ही रावण सज धज कर वहा अनेकों स्त्रियो के साथ आ गया। और सीता जी को समझने लगा में सभी रानियो को तुम्हारी दासी बना दूंगा।
तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही। रावण के ऐसे वचन सुनकर सीताजी श्री राम जी को स्मरण करते हुए बोली। में सिर्फ रामचरण की ही हूं में किसी दूसरे की और नहीं देखूंगी। अरे पापी तूने मुझे अकेला देख कर हर लिया है। हे निर्ल्ज तुझे इतनी भी लज्जा नहीं आई। इतने में रावण कहा की 1 माह में अगर सीता नहीं मानी तो में इसे तलवार से मर डालूंगा। ऐसा कहा कर रावण वहा से चला गया। वहा की रक्ष्शी सीता माता को डराने लगे उन अक्ष्शी यो में एक तृजढा नाम की रक्षशि भी थी। Sunderkand Katha
जो मन ही मन श्री राम कि भक्ति किया करती थी। वे सब रक्षशिओ को कहती थी कि सीता माता की सेवा कर के अपना कल्याण करलो। उसने अपने स्वप्न में एक वानर को लंका में आग लगाते हुए देख है और रावण को यमकुं तथा विभीषण को राजा बनते हुए देखा है। इसके बाद सारे वान में श्री राम जी की दुहाई फिर गई। और राम जी ने सीता को बुलाया। मुझे यह स्वप्न सुबह के समय आया है। तो निश्चय है कि ये 4 दिन में ही सही होगा तृजढा यह कहते ही सभी सक्षशिया डर गई। और सभी सीता जी के चरणों में गिर पड़ी। फिर सब राक्षशीयो के जाने के बाद सीता माता ने अशोक विक्ष से कहा कि है अशोक मेरी विनती सुन कर मेरा सारा शोक हर लो। और अपने नाम को सत्य करो। Sunderkand Katha
यह सब हनुमान जी देख ही रहे थे। दुख के कारण हनुमान जी में श्री राम की अंगूठी सीता माता की ओर फेंक दी। सीता जी ने खुश हो कर उसे अपने हाथ में ले लिया। राम नाम से अंकित वो अंगूठी बहुत ही शुशोभी थी। परन्तु अंगूठी को देख कर सीता जी के मन में अनेकों विचल आने लगे। उसी समय हनुमान जी ने राम नाम का पाठ चालू कर दिया उनके मुख से मधुर वाणी नीकल रही थी। सीता जी बोले कोन यह मदुनर रस बरसा रहा है। तब ही बजरंग बलि उनके सामने प्रकट हुए। उन्हें देख कर सीता जिन मुंह फिर लिया। हनुमान जी ने कहा हे माता में राम जिका दूत हूं । Sunderkand Katha
यह अंगूठी भी मेही लाया हूं। श्री राम जी ने आप के लिए यह निशानी भेजी है। फिर हनुमान जी ने सारा सच सीता माता को बताया। सीता जी मान गई की हनुमान राम जी का दस है। हनुमान जी बोले मैया में आपके लिए श्री राम का संदेख लाया हूं। हनुमान जी के लए गए संदेश को सुन कर सीता जी प्रेम से गद गद हो उठी। फिर हनुमान जी ने कहा माता आप धैर्य रखो राक्षसी को जलने दीजिए। राम जी आपको छुड़ाने आ रहे है। यदि श्री राम जी को खबर पूर्व में ही मिल गई होती तो वे इतना विलम्ब भी नहीं करते। जानकी जी लेजाने को तो में भी यह से ले जाऊं। Sunderkand Katha
किन्तु राम जी ने मुझे इसकी आग्या नहीं दी। हे माता कुछ दिन और धीरज रखो। राम जी यहां वानरों के साथ आएंगे और रक्षशो को यहां से मार गिराएंगे। तब मातासिता ने कहा हे पुत्र तुम सब वानर एक जैसे ही होंगे। रक्षष तो बड़े बलवान होते है। तुम लोग इन का मुकाबला कैसे कर पाएंगे। तब हनुमान जी ने अपना सोने के पर्वत जैसा अपना आकर प्रकट किया। जो शत्रु के हृदय में भय उत्पन करने वाला था। उन्हें देख कर सीता जी को पूर्ण विश्वाश हो गया। और हनुमान जी ने फिर से छोटा रूप धारण कर लिया। सीता जी ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया। हे तात! तुम बल और शिल के निदान हो जाओ। हे पुत्र! तुम अजर अमर हो जाओ। श्री रघुनाथ तुम पे असीम कृपा करे। Sunderkand Katha
ऐसा सुन के हनुमान जी प्रभु बक्ती में लीन हो गए। तब हनुमान जी ने सीताजी से कहा। हे माता सुनिए ! ये सब सुन्दर सुन्दर फल वाले वक्षो को देख कर मुझे आत्यत भूख लग गई है।
तब सीता जी ने कहा बेटा! बड़े भारी राक्षश इस वन की रक्ष करते है। तब हनुमान जी ने कहा माता अगर आप सुख माने तो मुझे उनका दर नहीं है। तब सीता जी ने कहा हे तात ! श्री राम जी के चरणों को हृदय में धारण कर के ये मीठे फल का लो। फिर सीता जी को प्रणाम कर कर हनुमान ही वहा से चले गए। और भाग में घुस गए उन्होंने फल खाए और वर्क्षो को तोड ने लगे वहा बहुत से रक्षाश योद्धा रखवाले थे। कुछ को हनुमान जी ने मार दिया तो कुछ रावण के पास जपौंचे। रावण के समीप जा के रावण को बताया कि एक बड़ा भारी बंदर आया है। sunderkand katha
उसने पूरी अशोक वाटिका तहस नहस कर दी। यह सुन कर रावण ने और योद्घ भेजे परन्तु हनुमान जी ने उनको भी मार दिया। फिर रावण ने अक्ष्य कुमार को भेजा वहा श्रेष्ठ यद्धा को लेकर चला गया। उसने आते देख कर हनुमान जी ने एक हाथ में वृक्ष ले कर ललकारा और उसे मर कर महा ध्वनि से गर्जना कि।
पुत्र का वद्ध सुन कर रावण क्रोधित हो गया। उसने अपने जेष्ट पुत्र मेघनाथ को वह भेजा। और कहा हे पुत्र ! बंदर को मारना नहीं है। उसे यह बांध कर लाना है। मेघनाथ और हनुमान जी के बीच मह योद्धा हुआ। परन्तु मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्मास्त्र को देख कर हनुमानजी ने विचार किया अगर में ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो इसका निरादर हो जयेंगा। Sunderkand Katha
मेघनाथ ने हनुमान जी के और ब्रह्मास्त्र मारा और हनुमान जी वृक्ष से नीचे गिर गए। और मुर्ची हो गए। तब हनुमानजी की वो नागपाश में लेगाया। सभी देवी देवताओं रावण का भयभीत हुए मुख देख रहे थे। उसको देख कर हनुमान जी को तनिक भी भय नहीं था। और रावण को कहा। हे रावण तुम सीताजी को श्री राम को लौटा दो। राम के चरणों को हृदय में धारण कर लो। रावण ये सब बाते सुन कर कुपित हो जाता है। और अपने सेना को हनुमानजी को मारने का आदेश देता है। उसी समय मंत्रियों के साथ विभीषण जी वहा आ जाते है। और बहुत ही आग्रह करने के बाद रावण को समझाया कि दूत को मारना नहीं चाहिए। Sunderkand Katha
यह नीति के विरूद्ध है। कृपया इसे कोई ओर दण्ड दीजिए। फिर रावण आदेश देता है कि तेल में कपड़ा डुबो कर इसकी पूछ पर डाल दो। और आग लगा दो। परन्तु हनुमान जी ने ऐसा खेल किया की पूछ निरंतर लभी होती गई। इतने में ही नगर वसी वहा आ गए और हनुमान ही को ठोकरें मारने लगे।
फिर हनुमान जी के पूछ पर आग लगा दी गई। अग्नि को देख कर हनुमान जी बहुत छोटे हो गए। और सोने अटारी पर चढ़ने लगे। हनुमान जी एक से दूसरे अटारे पर छलांग लगाने लगे। देखते ही देखते उन्होंने सारा नगर जला दिया। पर उन्होंने विभीषण जी का घर नहीं जलाया। उसके बाद अपनी पूछ के आग भुजा कर वे सीता जी के पास चले गए। और वास जाने की आज्ञा ली। Sunderkand Katha
सीता जी ने अपनी चुड़वनी दे दी। फिर ने समुद्र में कूद पड़े और वापस आ गए। उन्होंने वानरों को हर्ष ध्वनि सुनाई। हनुमान जी को देख कर सभी हर्षित हो गए। और सभी वानरों ने अपना नया जन्म समझा। हनुमान जी के मुख प्रसन्न है। शरीर पर तेज विराज मान है। जिससे समझ में आ गया कि वे राम जी के कार्य कर आए है। हनुमान जी ने सीता माता की चूड़ामणि दी और श्री राम ने उन्हें गले से लगा लिया। श्री राम ने कपि राज सुग्रीव को बुलाया और कहा कि चलने की तैयारी कीजिए। सुग्रीव ने शिग्रहि वानर सेना को बुला लिया और सेनाओं के समूह आ गए। वानर भालू के झुंड आनेको प्रकार के थे। Sunderkand Katha
श्री राम ने आगे की ओर प्रस्थान किया इसके बारे में सीता माता को भी पता चला गया उनकी बई आंख फड़क फड़क कर यह कहा रही थी कि श्री राम उन्हें लेने आए रहे है। रावण के भाई विभीषण ने भी रावण को समझने का प्रयत्न किया परन्तु रावण एक न सुना। श्री राम एक ही लोगो के राजा नहीं है वे सारे समस्थ के राजा है।
तब रावण ने क्रोधित हो विभीषण से कहा तू मेरी नगरी में रहा कर प्रेम तपस्वी से करता है का तू उनसे ही जाके मिल उनकी ही नीति को अपना ले। और उन्हें ही पानी नीतियां बता विभीषण हर्षित हो कर अनेकमोनार्थ कर के श्री राम के पास चले गए। श्री राम ने अपना सेवक जाना कर अपने शरण में ले लिया। और उनसे पूछ की ये गहरे समुद्र को कैसे पर करे। Sunderkand Katha
तब विभीषण ने कहा हे धनुर्धारी यद्यपि आप के एक तीर से समुद्र सुख सा कते है। पर नीति ये कहती है कि पहले जाकर समुद्र से प्राथना कि जाए। राम जी ने समुद्र को प्रणाम किया और वहीं किनारे पर बैठ गए। जिस प्रकार विभीषण जी श्री राम के पास आए उसी प्रकार रावण ने विभीषण के पीछे दुद भेजे थे। पर वानरों ने उन्हें तुरंत ही बंद डाला। और उन्हे अनेक प्रकार से मार ने लगे। लक्ष्मण जी ने तुरन्त उन्हें छोड़ कर रावण के पास भेज दिया। और कहा एक चिट्ठी रावण को से देना। इतना कहा कर उन्हें वहा से भेज दिया। Sunderkand Katha
दूत के पास भेजी गई चिट्ठी रावण पडता है। चिट्ठी में लक्ष्मण जी भी यही लिख ते है की जानकी जी को छोड़ दिया जाए। इधर तीन दिन बीत गए। परंतु जड़समुद्र विनय भी नहीं मान रहा था। श्री राम जी प्रोशाहित हो कर बोले बिना भय के तृती नहीं होती। अतः में अग्नि बान से इस समुद्र को सुखा दूंगा। समुद्र सुख ने के भय से श्री राम के सम ने प्रकट हुआ। और बोला हे नाथ वानरों में नल और नील दो भाई है। Sunderkand Katha
उन्होंने बड़क पान में ऋषि से आशीर्वाद पाया था। की उनके स्पर्श से ही भारी से भरी पहाड़ भी आप के नाम से समद्र में तैर जाएंगे। और में आप की बल पूर्वक सहायता करूंगा। हे नाथ समुद्र को इस प्रकार जोड़ लीजिए कि तीनों लोकों में आप सुन्दर यश गया जाए। श्री राम के भारी बल और पौरोश को देख कर हर्षित हो गया। उसे सुख प्राप्त हुआ। फिर वे श्री राम के चरण वंदना कर वहा से चले गए। ओर इस प्रकार से Sunderkand Katha सुन्दरकाण्ड कथा समाप्त हुई।