॥ श्री बृहस्पति देव आरती ॥ Shree Brihaspati Dev Aarti॥
Brihaspati Dev Aarti: बृहस्पति देव की आरती को समर्पित करने से हम उन्हें प्रसन्न करते हैं और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। वे ज्योतिष्य शास्त्र में गुरु ग्रह के रूप में प्रसिद्ध हैं और धर्म शास्त्र में गुरु के समान माने जाते हैं।
बृहस्पति देव को ज्ञान, विवेक, बुद्धि, धर्म, शक्ति, संयम और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। उनकी कृपा से विद्यार्थी अच्छे अकादमिक परिणाम प्राप्त करते हैं और बुद्धिमान बनते हैं। इसी तरह, बृहस्पति देव की कृपा से व्यापारी व्यापार में सफलता प्राप्त करते हैं और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इस आरती का अधिकारिक अनुष्ठान गुरुवार के दिन किया जाता है, जो बृहस्पति देव को समर्पित होता है। भक्तजन इस आरती को प्रातः संध्या और संध्या समय में पढ़ते हैं, जिससे उन्हें ज्ञान, संयम और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Brihaspati Dev Aarti को पढ़ने से मनुष्य के अंतरंग गुण विकसित होते हैं और वह ईश्वरीय शक्तियों का आश्रय लेकर अपने जीवन को सफल बनाता है। यह आरती सभी प्रकार के विद्यार्थियों, व्यापारियों और साधकों के लिए उपयुक्त है जो अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।
Source: DHARMRAS DHARA
॥ श्री बृहस्पति देव आरती लिरिक्स ॥ Shree Brihaspati Dev Aarti Lyrics॥
हिन्दू धर्म में बृहस्पति देव को सभी देवताओं का गुरु माना जाता है। गुरुवार के व्रत में बृहस्पति देव की आरती करने का विधान माना जाता है, अतः श्री बृहस्पति देव की आरती निम्न लिखित है।
जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥