॥ श्री विष्णु स्तुति ॥ Shree Vishnu Stuti॥
Shree Vishnu Stuti हिंदू धर्म में विष्णु भगवान की महिमा और महत्त्व को व्यक्त करने वाला एक प्रमुख स्तोत्र है। विष्णु भगवान सृष्टि, स्थिति और संहार के त्रिमूर्ति में से एक हैं और संसार को पालने वाले भगवान माने जाते हैं। श्री विष्णु स्तुति के पठन से भक्त के मन में भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा, भक्ति, और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है।
Shree Vishnu Stuti का प्राचीन संस्कृत भाषा में रचित होने के साथ-साथ, इसका गहन धार्मिक अर्थ भी है। इस स्तोत्र में विष्णु भगवान के नामों, विशेषताओं, गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसके पठन से भक्त को आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Shree Vishnu Stuti को पढ़ने से भक्त के मन में ईश्वर के प्रति भक्ति एवं विश्वास की ऊर्जा उत्पन्न होती है। भक्त अपने जीवन में धर्म, नैतिकता, और सत्य के प्रति समर्पित होते हैं और भगवान विष्णु के आशीर्वाद से समस्त संकटों से रक्षित रहते हैं।
Source: Rajshri Soul
॥ श्री विष्णु स्तुति ॥ Shree Vishnu Stuti Mantra॥
॥ विष्णु शान्ताकारं मंत्र ॥
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥
हिन्दी भावार्थ:
जिनकी आकृति स्वरूप अतिशय शांत है,जो जगत के आधार व देवताओं के भी ईश्वर (राजा) है, जो शेषनाग की शैया पर विश्राम किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है और जिनका वर्ण श्याम रंग का है, जिनके अतिशय सुंदर रूप का योगीजन ध्यान करते हैं, जो गगन के समान सभी जगहों पर छाए हुए हैं, जो जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जिनकी भक्तजन बन्दना करते हैं, ऐसे लक्ष्मीपति कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को अनेक प्रकार से विनती कर प्रणाम करता हूँ ।
ब्रह्मा, शिव, वरुण, इन्द्र, मरुद्गण जिनकी दिव्य स्तोत्रों से स्तुति गाकर रिझाते है, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित प्रसन्न हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर जिनके अंत को नही पाते, उन नारायण को सौरभ नमस्कार करता हैं ॥