क्या पीरियड्स में महिलाएं कांवड़ यात्रा कर सकती हैं? जानें धार्मिक नियम और सावधानियां

सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है। लाखों श्रद्धालु, जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल होते हैं, नंगे पांव गंगा जल लेकर शिव मंदिरों में जल अर्पित करते हैं। लेकिन एक सवाल जो अकसर बहस का विषय बन जाता है, वह है:
क्या महिलाएं माहवारी (Periods) के दौरान कांवड़ यात्रा कर सकती हैं?

कांवड़ यात्रा

इस लेख में हम इस प्रश्न से जुड़े धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को सरल भाषा में समझने का प्रयास करेंगे।

कांवड़ यात्रा का महत्व

कांवड़ यात्रा शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली एक कठिन, लेकिन बेहद पुण्यदायी यात्रा होती है। इसमें श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर पैदल चलते हैं और अपने इष्ट शिव को वह जल अर्पण करते हैं। इस यात्रा में शुद्धता, ब्रह्मचर्य, नियमों का पालन, और शरीर व मन की पवित्रता बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

पीरियड्स और धार्मिक मान्यता

हिंदू शास्त्रों और पुरानी परंपराओं के अनुसार, माहवारी के समय महिलाओं को पूजा-पाठ, मंदिर प्रवेश और व्रत-उपवास जैसे कार्यों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। इसका कारण धार्मिक से ज़्यादा स्वास्थ्य और आराम से जुड़ा हुआ है, लेकिन समय के साथ यह परंपरा कठोर नियम में बदल गई।

शास्त्रों में पीरियड्स को अशुद्धता नहीं बल्कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया माना गया है। लेकिन पुराने समय में महिलाओं के लिए आराम आवश्यक था, और उन्हें शारीरिक श्रम से बचाने के लिए धार्मिक क्रियाओं से दूर रखने की व्यवस्था की गई थी।

कांवड़ यात्रा में महिलाओं की भागीदारी

आज के समय में कई महिलाएं पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ कांवड़ यात्रा करती हैं। कई शिवभक्त महिलाएं पैदल यात्रा करती हैं, व्रत रखती हैं और गंगा जल अर्पित करती हैं। यह भक्ति की शक्ति और समर्पण का प्रतीक है।

लेकिन माहवारी के समय कांवड़ यात्रा करना कुछ कारणों से विवाद का विषय बन जाता है ।

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पीरियड्स में कांवड़ यात्रा करने को लेकर 3 प्रमुख दृष्टिकोण

धार्मिक दृष्टिकोण:

  • पारंपरिक रूप से माना जाता है कि माहवारी के दौरान शरीर “अशुद्ध” होता है और उस अवस्था में पवित्र कार्य जैसे शिव पूजा, जल अर्पण या मंदिर प्रवेश नहीं करना चाहिए।
  • कुछ तीर्थ स्थलों पर तो महिलाओं के प्रवेश पर रोक भी होती है, चाहे वह किसी भी अवस्था में हों।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

  • कई आधुनिक संत और विद्वान मानते हैं कि भगवान शिव भावना के भूखे हैं, शरीर की अवस्था के नहीं
  • यदि महिला सच्चे मन और भक्ति से यात्रा करना चाहती है, तो उसमें कोई दोष नहीं है।

स्वास्थ्य और व्यावहारिक दृष्टिकोण:

  • पीरियड्स के दौरान महिलाओं को थकावट, दर्द और कमजोरी का अनुभव होता है।
  • लंबे पैदल सफर, गर्मी, भीड़ और भोजन की कठिनाइयों के चलते यह समय महिलाओं के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • इसके चलते कई महिलाएं स्वयं इस दौरान यात्रा टालती हैं।

क्या कहता है समाज और आधुनिक विचार?

आज के समय में अनेक महिलाएं समाज की सोच से बाहर निकलकर कांवड़ यात्रा में हिस्सा ले रही हैं।

कुछ संगठनों ने महिला कांवड़ यात्रियों के लिए अलग सुविधा और व्यवस्था भी की है।

हालांकि, अब भी कई रूढ़िवादी सोच वाले परिवारों या समुदायों में महिलाओं को यात्रा से रोका जाता है।

पीरियड्स में कांवड़ यात्रा करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें: अगर आप अस्वस्थ महसूस करती हैं, तो यात्रा टालना बेहतर रहेगा।

शरीर की सफाई और हाइजीन का ध्यान रखें: यात्रा में सैनिटरी नैपकिन, कपड़े और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करें।

सहायता और सुरक्षा: अकेले यात्रा न करें, महिला समूह में जाएं और ज़रूरी दवाइयां साथ रखें।

श्रद्धा सर्वोपरि है: आपकी भक्ति और भावना ही सबसे बड़ी चीज़ है।

किसी को जज न करें: कोई महिला पीरियड्स में यात्रा करती है या नहीं – यह पूरी तरह उसका व्यक्तिगत निर्णय और परिस्थिति पर निर्भर करता है।

क्या महिलाएं पीरियड्स के दौरान कांवड़ यात्रा कर सकती हैं?

इस प्रश्न का कोई एक “हां” या “ना” में उत्तर नहीं है। यह पूरी तरह व्यक्ति की श्रद्धा, शारीरिक स्थिति, सामाजिक वातावरण और व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है।

भगवान शिव सभी भक्तों को एक समान दृष्टि से देखते हैं। वह भावना के भोलेनाथ हैं। यदि कोई महिला अपनी परिस्थिति, स्वास्थ्य और श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेती है, तो उसे किसी आलोचना या शर्मिंदगी का सामना नहीं करना चाहिए।

🙏 “हर हर महादेव” 🙏

आप भी इस सावन, श्रद्धा और भक्ति से जुड़ें – चाहे घर पर पूजा करके या कांवड़ यात्रा में भाग लेकर।

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