
॥ ॐ जय जगदीश आरती ॥ Om Jai Jagdish Aarti॥

Om Jai Jagdish Aarti: “ॐ जय जगदीश हरे” आरती हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण आरतियों में से एक है। यह आरती प्रतिदिन सुबह-संध्या में भगवान विष्णु के समर्पण एवं पूजन के लिए प्रयोग की जाती है। इस आरती के गाने से भक्त भगवान विष्णु की कृपा को प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
यह आरती भगवान विष्णु की भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करने के लिए गाई जाती है। यह आरती भक्तों को दिव्य आनंद, मानसिक शांति और धार्मिक संबल का अनुभव कराती है। भक्तजन इस आरती के गाने से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि करते हैं और सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
सार्थक शब्दों में कहें तो, Om Jai Jagdish Aarti भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का सफल माध्यम है और भक्तों को उच्चतम धार्मिक साधनाओं को प्राप्त करने में सहायता करती है। यह आरती भक्तों के दिल को शुद्ध करती है और उन्हें दिव्य शक्ति के साथ अभिवृद्धि का मार्ग दिखाती है।
Source: T-Series Bhakti Sagar

॥ ॐ जय जगदीश आरती लिरिक्स ॥ Om Jai Jagdish Aarti Lyrics॥

दुनियाँ में सबसे ज्यादा लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा सन् १८७० में लिखी गई थी। यह आरती मूलतः भगवान विष्णु को समर्पित है फिर भी इस आरती को किसी भी पूजा, उत्सव पर गाया / सुनाया जाता हैं। कुछ भक्तों का मानना है कि इस आरती का मनन करने से सभी देवी-देवताओं की आरती का पुण्य मिल जाता है।
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
Om Jai Jagdish Aarti के रचयिता पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। पंडित जी को हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यासकार भी माना जाता है।

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