श्री चित्रगुप्त चालीसा (Shree Chitragupt Chalisa) Hindi PDF Download
Chitragupt Chalisa एक प्रसिद्ध हिंदी धार्मिक स्तोत्र है, जो चित्रगुप्त देवता की महिमा और उनके कर्मों के अनुसार फलने वाले प्रत्येक कार्य की प्रशंसा करता है। चित्रगुप्त देवता हिंदू धर्म में यमराज के सचिव और कार्मिक रक्षक के रूप में माने जाते हैं। उन्हें यमदूतों के मुखिया भी कहा जाता है। Chitragupt Chalisa को विशेषकर पितृपक्ष और श्राद्ध के अवसर पर भक्तों द्वारा पाठ किया जाता है।
Source: SwarLahri
॥ श्री चित्रगुप्त चालीसा लिरिक्स ॥ Shree Chitragupt Chalisa Lyrics॥
॥ दोहा॥
सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥
करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥
॥ चौपाई ॥
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर।
जय यमेश दिगंत उजागर॥
अज सहाय अवतरेउ गुसांई।
कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥
श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा।
भांति-भांति के जीवन राचा॥
अज की रचना मानव संदर।
मानव मति अज होइ निरूत्तर॥ ४ ॥
भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई।
धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥
राचेउ धरम धरम जग मांही।
धर्म अवतार लेत तुम पांही॥
अहम विवेकइ तुमहि विधाता।
निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥
श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी।
त्रय देवन कर शक्ति समानी॥ ८ ॥
पाप मृत्यु जग में तुम लाए।
भयका भूत सकल जग छाए॥
महाकाल के तुम हो साक्षी।
ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥
धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो।
कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥
राम धर्म हित जग पगु धारे।
मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥ १२ ॥
विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें।
पालन धर्म करम शुचि साजे॥
महादेव के तुम त्रय लोचन।
प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥
सावित्री पर कृपा निराली।
विद्यानिधि माँ सब जग आली॥
रमा भाल पर कर अति दाया।
श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥ २० ॥
ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो।
जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥
गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा।
जाके कर्म गहइ तव हाथा॥
रावण कंस सकल मतवारे।
तव प्रताप सब सरग सिधारे॥
प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा।
सोउ करत तुम्हारी सेवा॥ २४ ॥
रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी।
विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥
व्यास चहइ रच वेद पुराना।
गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥
पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा।
असवर देय जगत कृत कीन्हा॥
लेखनि मसि सह कागद कोरा।
तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥ २८ ॥
विद्या विनय पराक्रम भारी।
तुम आधार जगत आभारी॥
द्वादस पूत जगत अस लाए।
राशी चक्र आधार सुहाए॥
जस पूता तस राशि रचाना।
ज्योतिष केतुम जनक महाना॥
तिथी लगन होरा दिग्दर्शन।
चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥ ३२ ॥
राशी नखत जो जातक धारे।
धरम करम फल तुमहि अधारे॥
राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई।
प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥
श्री गणेश तव बंदन कीना।
कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥
देववृत जप तप वृत कीन्हा।
इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥ ३६ ॥
धर्महीन सौदास कुराजा।
तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥
हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा।
कायथ परिजन परम पितामा॥
शुर शुयशमा बन जामाता।
क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥
जय जय चित्रगुप्त गुसांई।
गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥ ४० ॥
जो शत पाठ करइ चालीसा।
जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥
विनय करैं कुलदीप शुवेशा।
राख पिता सम नेह हमेशा॥
॥ दोहा ॥
ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥
पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥
श्री Chitragupt Chalisa की महत्वपूर्ण विशेषताएं
Chitragupt Chalisa एक प्रसिद्ध हिंदी धार्मिक स्तोत्र है, जो चित्रगुप्त देवता की महिमा और उनके कर्मों के अनुसार फलने वाले प्रत्येक कार्य की प्रशंसा करता है। चित्रगुप्त देवता हिंदू धर्म में यमराज के सचिव और कार्मिक रक्षक के रूप में माने जाते हैं। उन्हें यमदूतों के मुखिया भी कहा जाता है। Chitragupt Chalisa को विशेषकर पितृपक्ष और श्राद्ध के अवसर पर भक्तों द्वारा पाठ किया जाता है।
कार्मिक फल की भूमिका: Chitragupt Chalisa के पाठ से भक्तों को अपने कर्मों के फल को स्वीकार करने की महत्वता का बोध होता है।
पितृपक्ष और श्राद्ध: Chitragupt Chalisa को पितृपक्ष और श्राद्ध के अवसर पर पाठ करने से भक्तों के पितृदोषों का निवारण होता है और पितृ आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना होती है।
कार्मिक संवेदना: Chitragupt Chalisa के पाठ से भक्त की कार्मिक संवेदना विकसित होती है और उन्हें अपने कर्मों के प्रति सच्ची उत्तरदायित्व का अनुभव होता है।
धर्मिक उपास्यता: Chitragupt Chalisa के पाठ से भक्तों की धर्मिक उपास्यता विकसित होती है और उन्हें धर्मिक कर्तव्यों के प्रति समर्पित होने का बोध होता है।
आत्मविकास: Chitragupt Chalisa के पाठ से भक्त के आत्मा में आत्मविकास का संबल विकसित होता है और उन्हें कार्मिक रिक्ति के बदले में आत्मा के समृद्धि और परिपूर्णता की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार, Chitragupt Chalisa पितृपक्ष और श्राद्ध के अवसर पर भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक पाठ है, जो उन्हें कर्मों के फल, कार्मिक संवेदना, धर्मिक उपास्यता, और आत्मविकास के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।