॥ श्री अन्नपूर्णा चालीसा ॥ Shree Annapurna Chalisa॥
Annapurna Chalisa एक प्रसिद्ध हिंदी धार्मिक स्तोत्र है, जो मां अन्नपूर्णा की महिमा और उनके दानशील और उदार स्वरूप की प्रशंसा करता है। मां अन्नपूर्णा को देवी माँ का रूप माना जाता है और वे भोजन की देवी मानी जाती हैं। अन्नपूर्णा चालीसा को विशेषकर नवरात्रि और पूर्णिमा जैसे धार्मिक अवसरों पर भक्तों द्वारा पाठ किया जाता है।
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॥ श्री अन्नपूर्णा चालीसा लिरिक्स ॥ Shree Annapurna Chalisa Lyrics॥
॥ दोहा॥
विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।।
॥ चौपाई ॥
नित्य आनंद करिणी माता,
वर अरु अभय भाव प्रख्याता ॥
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,
अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ॥
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,
संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ॥
काशी पुराधीश्वरी माता,
माहेश्वरी सकल जग त्राता ॥
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,
विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ॥
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,
पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ॥
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,
योग अग्नि तब बदन जरावा ॥
देह तजत शिव चरण सनेहू,
राखेहु जात हिमगिरि गेहू ॥
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,
अति आनंद भवन मँह छायो ॥
नारद ने तब तोहिं भरमायहु,
ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ॥ 10 ॥
ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,
देवराज आदिक कहि गाये ॥
सब देवन को सुजस बखानी,
मति पलटन की मन मँह ठानी ॥
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,
कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ॥
निज कौ तब नारद घबराये,
तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ॥
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,
संत बचन तुम सत्य परेखेहु ॥
गगनगिरा सुनि टरी न टारे,
ब्रहां तब तुव पास पधारे ॥
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,
देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ॥
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,
कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ॥
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,
है सौगंध नहीं छल तोसों ॥
करत वेद विद ब्रहमा जानहु,
वचन मोर यह सांचा मानहु ॥ 20 ॥
तजि संकोच कहहु निज इच्छा,
देहौं मैं मनमानी भिक्षा ॥
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,
मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ॥
बोली तुम का कहहु विधाता,
तुम तो जगके स्रष्टाधाता ॥
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,
कहवावा चाहहु का मोंसों ॥
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,
शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ॥
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,
कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ॥
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,
फल कामना संशयो गयऊ ॥
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,
तब आनन महँ करत निवासा ॥
माला पुस्तक अंकुश सोहै,
कर मँह अपर पाश मन मोहै ॥
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,
अज अनवघ अनंत पूर्णे ॥ 30 ॥
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,
भव विभूति आनंद भरी माँ ॥
कमल विलोचन विलसित भाले,
देवि कालिके चण्डि कराले ॥
तुम कैलास मांहि है गिरिजा,
विलसी आनंद साथ सिंधुजा ॥
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,
मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ॥
विलसी सब मँह सर्व सरुपा,
सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ॥
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥
प्रात समय जो जन मन लायो,
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ॥
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥
राज विमुख को राज दिवावै,
जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ॥
पाठ महा मुद मंगल दाता,
भक्त मनोवांछित निधि पाता ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब, साखी काशी नाथ ॥
श्री Annapurna Chalisa की महत्वपूर्ण विशेषताएं
Annapurna Chalisa एक प्रसिद्ध हिंदी धार्मिक स्तोत्र है, जो मां अन्नपूर्णा की महिमा और उनके दानशील और उदार स्वरूप की प्रशंसा करता है। मां अन्नपूर्णा को देवी माँ का रूप माना जाता है और वे भोजन की देवी मानी जाती हैं। Annapurna Chalisa को विशेषकर नवरात्रि और पूर्णिमा जैसे धार्मिक अवसरों पर भक्तों द्वारा पाठ किया जाता है।
भोजन की प्रशंसा: Annapurna Chalisa के पाठ से भक्त भोजन की महत्वता को समझते हैं और उन्हें अन्नपूर्णा माँ के आशीर्वाद से सभी भोजनों को समर्पित करते हैं।
दानशील स्वरूप: Annapurna Chalisa में मां अन्नपूर्णा के दानशील और उदार स्वरूप की प्रशंसा होती है, जो भक्तों को दान और सेवा के महत्व को समझाती है।
पूर्णिमा उत्सव: Annapurna Chalisa को पूर्णिमा जैसे धार्मिक उत्सवों पर पाठ करने से भक्तों को अन्नपूर्णा माँ के आशीर्वाद से संपूर्णता और पूर्णता की प्राप्ति होती है।
धन और समृद्धि: Annapurna Chalisa के पाठ से भक्त को धन, समृद्धि, और आर्थिक सुख की प्राप्ति होती है।
आध्यात्मिक उन्नति: अन्नपूर्णा चालीसा के पाठ से भक्त के आत्मा में आध्यात्मिक उन्नति और संवेदना का संबल विकसित होता है।
इस प्रकार, Annapurna Chalisa मां अन्नपूर्णा के भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक पाठ है, जो उन्हें भोजन के महत्व, दानशीलता, धन, समृद्धि, और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।