Brihaspati Dev Aarti

॥ श्री चित्रगुप्त आरतीShree Chitragupt Aarti

Brihaspati Dev Aarti

Shree Chitragupt Aarti हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। चित्रगुप्त देवता हिंदू परंपरागत विश्वकर्मा देवता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्हें लोग ‘लिखित भाग्य का देवता’ मानते हैं। वे धर्मराज यमराज के सचिव और संसार के सभी व्यक्तियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।

Shree Chitragupt Aarti के पाठ से भक्त के पापों का क्षय होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त चित्रगुप्त देवता की आरती के माध्यम से अपने मन को शुद्ध करके सच्चे और निष्काम भाव से कर्म करते हैं और अधर्म से दूर रहते हैं।

Source: Devendra Vaidya

Brihaspati Dev Aarti

॥ श्री चित्रगुप्त आरती लिरिक्स ॥ Shree Chitragupt Aarti

Brihaspati Dev Aarti

श्री चित्रगुप्त आरती उन्हें समर्पित है, जिन्हें कर्म, धर्म, और न्याय के देवता माना जाता है। भक्त इस आरती के द्वारा चित्रगुप्त देवता के दर्शन करते हैं और उनकी कृपा से अपने कर्मों को शुद्ध करके सच्चे और सच्चे मार्ग पर चलते हैं।

भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती
ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै ।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी ।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
करमें अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा ।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
‘नानक’ शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे ॥

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