॥ श्री जगन्नाथ आरती ॥ Shree Jagganath Aarti॥
Shree Jagganath Aarti भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा-अर्चना का एक महत्वपूर्ण अंग है। भगवान जगन्नाथ को ओडिशा के राजा भविष्यकल्प और त्रिदेवों के रूप में पूजा जाता है और उन्हें पूजन करने से भक्त को आनंद, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
श्री जगन्नाथ आरती का पाठ करने से मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है। यह हमें प्रेम, समर्पण और सेवा की भावना से परिपूर्ण बनाता है और हमारे चित्त को पवित्र करता है।
Shree Jagganath Aarti के पाठ से भक्त की अभिवादना होती है और उन्हें भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त होती है। भगवान जगन्नाथ की कृपा से भक्त का जीवन सुखमय और समृद्धि भरा होता है और उन्हें सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
Source: something different
॥ श्री जगन्नाथ आरती लिरिक्स ॥ Shree Jagganath Aarti Lyrics॥
श्री जगन्नाथ आरती को प्रार्थना, भक्ति, और समर्पण का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है, जो हमें भगवान जगन्नाथ के प्रति अधिक समर्पण और श्रद्धा की प्राप्ति में सहायक होता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से भक्त को जीवन के सभी क्षेत्र में समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है, और उन्हें भगवान जगन्नाथ के प्रति अधिक भक्ति और आस्था का अनुभव होता है।
चतुर्भुज जगन्नाथ
कंठ शोभित कौसतुभः ॥
पद्मनाभ, बेडगरवहस्य,
चन्द्र सूरज्या बिलोचनः
जगन्नाथ, लोकानाथ,
निलाद्रिह सो पारो हरि
दीनबंधु, दयासिंधु,
कृपालुं च रक्षकः
कम्बु पानि, चक्र पानि,
पद्मनाभो, नरोतमः
जग्दम्पा रथो व्यापी,
सर्वव्यापी सुरेश्वराहा
लोका राजो, देव राजः,
चक्र भूपह स्कभूपतिहि
निलाद्रिह बद्रीनाथशः,
अनन्ता पुरुषोत्तमः
ताकारसोधायोह, कल्पतरु,
बिमला प्रीति बरदन्हा
बलभद्रोह, बासुदेव,
माधवो, मधुसुदना
दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह, बनमाली
बडा प्रियाह, ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी
बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः
श्री राम, सच्चिदानंदोह,
गोबिन्द परमेश्वरः
बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर,
प्रवर बिशणु महेसरवाहा
लोका कर्ता, जगन्नाथो,
महीह करतह महजतहह ॥
महर्षि कपिलाचार व्योह,
लोका चारिह सुरो हरिह
वातमा चा जीबा पालसाचा,
सूरह संगसारह पालकह
एको मीको मम प्रियो ॥
ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा
दुइ भुजस्च चतुर बाहू,
सत बाहु सहस्त्रक
पद्म पितर बिशालक्षय
पद्म गरवा परो हरि
पद्म हस्तेहु, देव पालो
दैत्यारी दैत्यनाशनः
चतुर मुरति, चतुर बाहु
शहतुर न न सेवितोह …
पद्म हस्तो, चक्र पाणि
संख हसतोह, गदाधरह
महा बैकुंठबासी चो
लक्ष्मी प्रीति करहु सदा ।